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काही माणसे थोडसे जरी संकट आले तरी घाबरून जातात, तर काही माणसे कितीही मोठे संकट आले तरी तोंड देतात; ही संकटांना न डगमगता, न घाबरता, न वाकता, न मोडता तोंड देणारी माणसे म्हणजे भक्त

काही माणसे थोडसे जरी संकट आले तरी घाबरून जातात, तर काही माणसे कितीही मोठे संकट आले तरी तोंड देतात; ही संकटांना न डगमगता, न घाबरता, न वाकता, न मोडता तोंड देणारी माणसे म्हणजे भक्त

परमेश्वर व त्याच्या भक्तांमध्ये कोणताही एजंट नाही. प्रत्येकाची रांग परमात्म्याकडे सद्‍गुरुकडे वेगवेगळीच आहे. मला दुसर्‍याच्या रांगेत घुसायचे नाही व माझ्या रांगेत कोणीही घुसू शकत नाही. माझ्यासाठी जे काही करायचे आहे ते तो परमात्माच करू शकतो.

परमेश्वर व त्याच्या भक्तांमध्ये कोणताही एजंट नाही. प्रत्येकाची रांग परमात्म्याकडे सद्‍गुरुकडे वेगवेगळीच आहे. मला दुसर्‍याच्या रांगेत घुसायचे नाही व माझ्या रांगेत कोणीही घुसू शकत नाही. माझ्यासाठी जे काही करायचे आहे ते तो परमात्माच करू शकतो.

कुछ लोग यदि थोडा सा भी संकट आ जाता है तो घबरा जाते हैं, वहीं, कुछ लोग चाहें कितना भी बड़ा संकट क्यों न आ जाये, उसका सामना करते हैं; संकटों में बिना डगमगाये, बिना डरे, बिना झुके, बिना टूटे उनका सामना करने वाले ये लोग अर्थात भक्त।

कुछ लोग यदि थोडा सा भी संकट आ जाता है तो घबरा जाते हैं, वहीं, कुछ लोग चाहें कितना भी बड़ा संकट क्यों न आ जाये, उसका सामना करते हैं; संकटों में बिना डगमगाये, बिना डरे, बिना झुके, बिना टूटे उनका सामना करने वाले ये लोग अर्थात भक्त।

परमेश्वर और उनके भक्तों मे बीच कोई भी एजंट नहीं होता। हर किसी की कतार परमात्मा के पास, सद्‍गुरु के पास अलग-अलग ही होती है। मुझे किसी अन्य की कतार में घुसना नहीं है और कोई और मेरी कतार में घुस नही सकता है। मेरे लिए जो कुछ भी करना है, वह परमात्मा ही कर सकते हैं।

परमेश्वर और उनके भक्तों मे बीच कोई भी एजंट नहीं होता। हर किसी की कतार परमात्मा के पास, सद्‍गुरु के पास अलग-अलग ही होती है। मुझे किसी अन्य की कतार में घुसना नहीं है और कोई और मेरी कतार में घुस नही सकता है। मेरे लिए जो कुछ भी करना है, वह परमात्मा ही कर सकते हैं।

भक्त चाहे कुछ भी और कितना भी क्यों न माँग ले, मगर वह यदि उसके लिए अनुचित है, तो परमात्मा, सद्‍गुरु या सद्‍गुरुतत्त्व अपने उस भक्त को वह कभी भी नहीं देते।

भक्त चाहे कुछ भी और कितना भी क्यों न माँग ले, मगर वह यदि उसके लिए अनुचित है, तो परमात्मा, सद्‍गुरु या सद्‍गुरुतत्त्व अपने उस भक्त को वह कभी भी नहीं देते।