जितने प्रमाण में ‘सद्गुरु रखवाला है’ यह विश्वास; उतने ही प्रमाण में आत्मविश्वास।
परमेश्वर और उनके भक्तों मे बीच कोई भी एजंट नहीं होता। हर किसी की कतार परमात्मा के पास, सद्गुरु के पास अलग-अलग ही होती है। मुझे किसी अन्य की कतार में घुसना नहीं है और कोई और मेरी कतार में घुस नही सकता है। मेरे लिए जो कुछ भी करना है, वह परमात्मा ही कर सकते हैं।
जब मैं परमेश्वर के साथ पूरी तरह सच्चाई से पेश आने लगता हूँ, उस समय मुझ में होने वाले बुरे से बुरे जो अवगुण हैं, वे सभी दूर करने का काम मेरे सद्गुरु का होता है, मेरे परमात्मा का होता है।
परमेश्वर, सद्गुरु के प्रति मेरे मन में होनेवाला धाक, आदरयुक्त भय यह एकमात्र शक्ति है, जो मुझे पशुप्रवृत्ति के सभी क्षेत्रों से बाहर निकाल सकती है।
भक्त चाहे कुछ भी और कितना भी क्यों न माँग ले, मगर वह यदि उसके लिए अनुचित है, तो परमात्मा, सद्गुरु या सद्गुरुतत्त्व अपने उस भक्त को वह कभी भी नहीं देते।