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मन में भक्तिभाव न होते हुए, केवल हाथों से मेरे द्वारा की जानेवाली कर्मकांड की कवायद मेरे परमेश्वर तक कभी नहीं पहुँचती।

मन में भक्तिभाव न होते हुए, केवल हाथों से मेरे द्वारा की जानेवाली कर्मकांड की कवायद मेरे परमेश्वर तक कभी नहीं पहुँचती।