जिसमें देने की प्रवृत्ति होती है, उसे ही भगवान देते रहते हैं। जिसमें लोगों को लूटने की प्रवृत्ति होती है, सिर्फ लोगों से हथियाने की ही प्रवृत्ति होती है, उसे भगवान कुछ नहीं देते।
‘भगवान हैं’ यह सिर्फ मानना ही आस्तिक भावना नहीं है, बल्कि मेरे जीवन में मुझे भगवान चाहिए, भगवान का शासन मुझ पर बना रहे, ऐसी इच्छा होना यह आस्तिक भावना है।
भगवान का नामस्मरण कैसे करना चाहिए, और संकटों का सामना किस तरह करना चाहिए, यह सामान्य मानवों को सिखाने के लिए ही संतो के चरित्र होते हैं।