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‘प्रथम पृथ्वी नीट सपाट व स्वच्छ करून मग तेथे आपल्या सोयीनुसार नद्या, पर्वत बांधावेत व मग आपले नगर बसवावे’ ही कल्पना मूर्खपणाची आहे, हे कुणालाही कळते. आहे ते स्वीकारावेच लागते व त्यानुसार आपले कार्य घडवावे लागते.

‘प्रथम पृथ्वी नीट सपाट व स्वच्छ करून मग तेथे आपल्या सोयीनुसार नद्या, पर्वत बांधावेत व मग आपले नगर बसवावे’ ही कल्पना मूर्खपणाची आहे, हे कुणालाही कळते. आहे ते स्वीकारावेच लागते व त्यानुसार आपले कार्य घडवावे लागते.

‘पहले पृथ्वी को अच्छी तरह से समतल एवं स्वच्छ करके फिर वहाँ अपनी सुविधा के अनुसार नदियाँ, पर्वत बनाने चाहिए और फिर अपना नगर बसाना चाहिए’ यह कल्पना मूर्खता भरी है, यह बात किसी की भी समझ में आ सकती है। जो है उसका स्वीकार करना ही पड़ता है और उसके अनुसार अपने कार्य को पूरा करना होता है।

‘पहले पृथ्वी को अच्छी तरह से समतल एवं स्वच्छ करके फिर वहाँ अपनी सुविधा के अनुसार नदियाँ, पर्वत बनाने चाहिए और फिर अपना नगर बसाना चाहिए’ यह कल्पना मूर्खता भरी है, यह बात किसी की भी समझ में आ सकती है। जो है उसका स्वीकार करना ही पड़ता है और उसके अनुसार अपने कार्य को पूरा करना होता है।

प्रेम से एवं ध्यानपूर्वक किया गया कार्य यह प्रशिक्षित एवं व्यावसायिक व्यक्तियों के द्वारा किये गये कार्य से भी अधिक उत्कृष्ट होता है।

प्रेम से एवं ध्यानपूर्वक किया गया कार्य यह प्रशिक्षित एवं व्यावसायिक व्यक्तियों के द्वारा किये गये कार्य से भी अधिक उत्कृष्ट होता है।