‘पहले पृथ्वी को अच्छी तरह से समतल एवं स्वच्छ करके फिर वहाँ अपनी सुविधा के अनुसार नदियाँ, पर्वत बनाने चाहिए और फिर अपना नगर बसाना चाहिए’ यह कल्पना मूर्खता भरी है, यह बात किसी की भी समझ में आ सकती है। जो है उसका स्वीकार करना ही पड़ता है और उसके अनुसार अपने कार्य को पूरा करना होता है।