स्वयं को विशिष्ट क्रम से बांधे रखने को अनुशासन कहते हैं। जिस जीवन में अनुशासन नहीं होता, उस जीवन का विकास नहीं होता। जिस कार्य में अनुशासन नहीं होता, उस कार्य का भी विकास नहीं होता।